आधी आबादी के अस्तित्व से जुड़े प्रश्न 

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laxmi aggrawal

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवः। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है। लेकिन क्या यह सच है? यदि हां तो फिर हमारे देश में इसे झुठलाया क्यों जा रहा है। क्योंकि सच्चाई तो इससे बेहद अलग है। इस तरह की धारणा को मानने वाले हमारे देश में नारी उपेक्षित है। वह पल-पल अपमान सहने को मजबूर है, अपनी आकांक्षाओं का गला घोंटने को विवश है, वह अपने अस्तित्व को भुला चुकी है।
आज हमारे देश में नारी यानी कि आधी आबादी की जो स्थिति है, उसे देखकर ऊपरी तौर पर जरूर कहा जा सकता है कि हमारे यहां नारी का विकास हो रहा रहा है, उसे उन्नति के पथ पर आगे बढ़ने के भरपूर अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं, वह पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही है, क्या वाकई ऐसा है? कतई नहीं, प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से महिलाओं पर आज भी संकट बरक़रार है। वह आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। आधी आबादी के विकास के बावजूद आज भी वह अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। आज भी उनके अस्तित्व को अपनी पहचान की दरकार है। यदि हम इतिहास के झरोखों में झाँकें तो पता चलता है कि जिस समय पश्चिमी समाज नारी पुरुष समानता की बात करता था, उससे कहीं पहले हमारे देश में नारी को पुरुषों से भी ऊंचा दर्जा प्राप्त था। पश्चिमी समाज में तो महिलाओं को स्थिति माँ, बहन और बेटी तक ही सीमित है लेकिन हमारे यहाँ नारी को देवी कहा जाता है। हमारे यहाँ सम्पूर्ण विश्व का पालन करने वाली धरती भी माँ स्वरूपा व पूजनीय है। हमारी संस्कृति में नारी को अर्द्धांगिनी कहा जाता है, अर्थात जिसके बिना पुरुष अधूरा है। हमारे यहाँ नारी की स्थिति काफी अच्छी थी परन्तु दुर्भाग्यवश समयांतर में इनकी स्थिति खराब होती गई और आज स्थिति यह है कि इन्हें अपने अस्तित्व को पहचान दिलाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।  देश की आधी आबादी की स्थिति बहुत ही दर्दनाक और खौफनाक होती जा रही है।पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के प्रति बढ़ती बर्बरता और अत्याचार के मामलों ने सोचने को विवश कर दिया है कि क्या सचमुच हम उसी भारतवर्ष में जी रहे हैं, जिसकी संस्कृति विश्व की सभी संस्कृतियों में श्रेष्ठ थी। जो देश सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बना उसी महान राष्ट्र में मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं हो रही हैं।
क्या देश की आधी आबादी को एक भयमुक्त वातावरण में जीवनयापन का कोई अधिकार नहीं? यदि है, तो फिर क्यों नहीं हम सभी अपनी आधी आबादी को बेहतर जीवन देने के लिए प्रयासरत हो पा रहे ?आखिर हमारे प्रयासों में कौन सी कमी है, जो पुरुष को नारी का सम्मान करने से रोकती है। स्त्री को देवी का रूप मानने वाली हमारी संस्कृति तो हमें उस जननी का सम्मान करना सिखाती है, तो फिर हम यह कौन सी संस्कृति का पालन कर रहे हैं, जो हमें उनके अस्तित्व को रौंदकर अपना पौरुषत्व सिद्ध करना सिखा रही है। दहेज़ व लेन-देन के नाम पर कुप्रथाओं को बढ़ावा देकर तथा लड़के के परिवार द्वारा लड़की के परिवार को हीन भावना से देखने की संस्कृति तो हमारी नहीं। हम सभी के जीवन के आदर्श भगवान श्रीराम के जीवन को देखें तो हम पाएंगे कि स्वयं राजा दशरथ ने राजा जनक के पैर छूकर उन्हें बड़ा सिद्ध किया, कन्यादान को महादान सिद्ध कर लड़की व उसके परिवार के अस्तित्व को सर्वोपरि महत्त्व दिया। फिर हम लोग कौन होते हैं किसी स्त्री के जीवन को दहेज़ व लेन-देन की कुप्रथाओं की भेंट चढाने वाले? क्या वाकई हम अपनी पुरातन संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं, एक बार विचार जरूर कीजिएगा। संस्कृति का रोना रोकर आधी आबादी के अस्तित्व को दरकिनार करने वाले कृपया एक बार अवश्य अपनी संस्कृति का गहन अध्ययन करें, फिर शायद मुझे कुछ कहने की आवश्यकता ही न रह जाए।

लक्ष्मी अग्रवाल

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