डॉ. वीरेन्द्र भाटी मंगल
गुजरात साबरकांठा के खेरोज गांव में अणुव्रत आंदोलन के तृतीय अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ने आंदोलन के 75 वे वर्ष प्रवेष पर आगामी एक वर्ष तक अपनी पद्यात्रा को अणुव्रत यात्रा के रूप में घोषित कर देश-विदेष में फैले अणुव्रत कार्यकत्ताओं को नया चिंतन प्रदान किया है। आचार्यश्री इस अणुव्रत यात्रा के माध्यम से अहिंसक व शांतिपूर्ण समाज का निर्माण, नैतिकता, सदभावना, नषामुक्ति के माध्यम से अणुव्रत को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। अणुव्रत अनुशास्ता ने अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष की घोषणा करते हुए 21 फरवरी 2023 से 12 मार्च 2024 (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया) तक अणुव्रत यात्रा के माध्यम से देष में अहिंसक व शांतिपूर्ण समाज के निर्माण की दिषा में अणुव्रत के कार्यकत्ताओं को कार्य करने का चिंतन दिया।
भारत की आजादी के तत्काल बाद असली आजादी अपनाओं का आह्वान करते हुए स्वस्थ समाज संरचना एवं मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना के लिए अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्त्तन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य तुलसी ने 01 मार्च, 1949 को चुरू जिले के सरदारषहर से किया था। जाति, वर्ण, संप्रदाय से मुक्त इस नैतिकता के आंदोलन से प्रभावित होकर लाखों लोग संयममय जीवन शैली अपनाने के लिए कृतसंकल्पित हो गये। 2023-24 में आंदोलन का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। नैतिकता और मानवीय मूल्यों के उन्नयन को समर्पित यह आंदोलन विष्व का एक मात्र नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना का आंदोलन है।
आंदोलन के प्रारम्भिक काल में इसके प्रचार-प्रसार के लिए आचार्य तुलसी ने कल्पनाशील मष्तिस्क से चिंतन किया, योजनाएं बनाई और लम्बी-लम्बी यात्राओं द्वारा उन्होंने इस नैतिक आंदोलन को विष्वस्तरिय बनाया। गरीब की झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक इसकी गूँज पहुँची। अणुव्रत का स्वरूप इतना व्यापक है कि बिना किसी जाति, धर्म व सम्प्रदाय के यह सबको मान्य है। इसकी कोई सीमा नहीं है। बच्चा, जवान व बूढ़ा कोई भी इसकी अनुपालना कर सकता है। बल्कि मेरा तो यहाँ तक मानना है कि कोई नास्तिक व्यक्ति भी इस मानव धर्म को अपनाने में संकोच अनुभव नहीं करेगा।
अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष का शुभारम्भ करते हुए वर्तमान अणुव्रत अनुषास्ता आचार्य महाश्रमण जी ने अपनी एक वर्षीय एक पद्यात्रा को अणुव्रत यात्रा के रूप में घोषित कर अणुव्रत कार्यकत्ताओं के उत्साह में वृद्धि की है। फलस्वरूप यह आंदोलन ओर अधिक गति के साथ नैतिकता, सदभावना व नषामुक्ति के क्षेत्र में लोगों को प्रेरित करेगा। गुजरात के खेडब्रह्मा में आयोजित अमृत महोत्सव शुभारम्भ समारोह के अवसर पर बोलते हुए आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि अणुव्रत व मानवता को हम शुद्ध साध्य माने तो उसकी प्राप्ति में आर्थिक शुचिता को एक शुद्ध साधन माना जा सकता है। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी इस दिशा में जागरूक है, यह अच्छी बात है। साध्य और साधन दोनों शुद्ध हों, यह कार्य की सफलता के लिए अपेक्षित है। हमारी अहिंसा यात्रा से जुड़े सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के उद्देश्य अणुव्रत के सिद्धांतो का ही हिस्सा रहे हैं। अणुव्रत अमृत वर्ष के सन्दर्भ में हम आगामी एक वर्ष की यात्रा को अणुव्रत यात्रा के रूप में घोषित कर रहे हैं। अणुव्रत के क्षेत्र में और कार्य हो, व्यापकता आए यह काम्य है। अपने उद्बोधन के पश्चात् अचार्य प्रवर ने अणुव्रत गीत का संगान स्वयं अपने मुखारविन्द से किया। उपस्थित अणुव्रत कार्यकर्ताओं एवं जनमेदिनी ने अपने स्वर मिला कर माहौल को अणुव्रतमय बना दिया।
आंदोलन की मुख्य संस्था अणुव्रत विष्वभारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश नाहर ने आचार्यश्री के प्रति ‘‘अणुव्रत यात्रा‘‘ की अमृत उद्घोषणा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए बताया कि वर्तमान में देश भर में लगभग 160 अणुव्रत समितियों और अणुव्रत मंचों से जुड़े हजारों कार्यकर्ता समर्पित भाव से इस मानवतावादी मिशन को जन-जन तक पहुँचाने के लिए कृत संकल्पित हैं। इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नेपाल सहित विभिन्न देशों में भी मूल्यों से प्रेरित अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से व्यक्तित्व निर्माण को गति मिल रही है। अणुव्रत अमृत महोत्सव के राष्ट्रीय संयोजक संचय जैन ने बताया कि विश्व जिन समस्याओं से जूझ रहा है उनका समाधान अणुव्रत के संयम दर्शन में छिपा हुआ है। उन्होंने व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण और कार्यकर्ता निर्माण में अणुव्रत आंदोलन की भूमिका को रेखांकित किया।
अणुव्रत एक व्यापक जीवन शैली है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को संयम का पालन करते हुए परिवार, समाज व देष के लिए उपयोगी बना सकता है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आचार संहिता का निर्माण कर देष के प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो किसी भी धर्म, रंग, जाति, वर्ण आदि का हो अणुव्रत नियमों का पालन कर अणुव्रती बन सकता है। इसी प्रकार अणुव्रत आंदोलन के निदेशक तत्व इस प्रकार हैं-दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता, मानवीय एकता, सह-अस्तित्व कि भावना का विकास, सांप्रदायिक सदभाव, अहिंसात्मक प्रतिरोध, व्यक्तिगत संग्रह और भोगोपयोग की सीमा, व्यवहार में प्रामाणिकता, साधन-शुद्धि कि आस्था, अभय, तटस्थता और सत्य-निष्ठा। अणुव्रत संयम पर आधारित है। ध्येय सूत्र संयम के माध्यम से व्यक्ति जीवन में बहुत सी समस्याओं का समाधान कर सकता है। अणुव्रत मानता है कि इच्छाओं पर संयम होना जरूरी है, क्योंकि इच्छाएं अनंत होती है और अनंत इच्छाएं दूसरों के अधिकार का हनन करती हैं। व्यक्ति को क्रूर बना देती है। अणुव्रत का लक्ष्य है-इच्छाओं पर संयम। अणुव्रत के अनुसार जिस व्यक्ति में करुणा होगी उसके लिए दूसरों के दुःख असह्य हो जाएँगे। वह अपने आचरणों के द्वारा किसी के प्रति क्रूर नहीं बनेगा, अपितु अपने आपको भी इस तरह से ढालेगा कि किसी अन्य को कोई कष्ट नहीं हो। उसके सामने सदा यह लक्ष्य रहेगा-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद् दुःखभाग भवेत्।।
पिछले 75 वर्षों से यह अणुव्रत आंदोलन देष-विदेष में अपनी सक्रियता के द्वारा जन-जन में नैतिकता की अलख जगा रहा है। अमृत महोत्सव पर आचार्य महाश्रमण द्वारा अणुव्रत यात्रा की घोषणा से निःसंदेह कार्यकर्ता ओर अधिक गति के साथ कार्य कर देष में अहिंसक एवं शांति की गतिविधियों को बढाने में सहायक सिद्ध होगें।
राष्ट्रीय संयोजक-अणुव्रत लेखक मंच,
लक्ष्मी विलास,
करन्ट बालाजी कॉलोनी, लाडनूं 341306