विविधता में एकता की मिसाल हमारे भारत देश में प्राचीन काल से ही कई पर्व प्रचलित हैं। हमारा देश त्योहारों व संतों की भूमि है, जहाँ जीवन के विभिन्न रंगों की झलक यहाँ मनाए जाने वाले उत्सवों में दिखाई देती है। हमारे पर्व देश की सांस्कृतिक छवि को उकेरते हैं। हमारे महान राष्ट्र की छवि को समृद्ध करने वाला ऐसा ही एक पर्व है, ‘नवरात्र’। जिसमें नौ दिन व नौ रात्रि माँ के विभिन्न नौ रूपों की पूजा व आराधना की जाती है। शक्ति की उपासना का यह पर्व महिलाओं व कन्याओं के सशक्तीकरण का पर्व है। नौ दिन माँ के विविध रूपों की पूजा-अर्चना के बाद नवें दिन कन्या पूजन करना नारी-शक्ति के महत्त्व को दर्शाता है। स्वयं शिव ने अर्धनारीश्वर का रूप धर नारी शक्ति से जगत का परिचय कराया। माँ दुर्गा के नौ स्वरुप भी नारी सशक्तीकरण के प्रतीक हैं। आइये जानते हैं कौन से हैं माँ दुर्गा के नौ रूप और कैसे करें उनकी आराधना –
शैलपुत्री- माँ दुर्गा के पहले रूप का नाम है ‘शैलपुत्री’। पर्वतराज हिमालय के घर में जन्म लेने के कारण इनका यह नाम पड़ा। वृष इनका वाहन है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा नाम से भी जाना जाता है। शैलपुत्री ही सती हैं। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाने का निर्णय लिया जिसमें सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया परन्तु भगवान शिव को नहीं। पितृ-प्रेम के वशीभूत होकर माँ सती बिना निमंत्रण के पिता के यहाँ चली गईं, जहाँ उन्हें अपने आत्मीय जनों एवं पिता की उपेक्षा व पति का तिरस्कार सहना पड़ा। अपने पति का ऐसा तिरस्कार उनके लिए असहनीय था, इस दारुण दुःख के कारण उन्होंने उसी समय स्वयं को यज्ञ की अग्नि में स्वाहा कर दिया। माँ शैलपुत्री का यह रूप नारी के स्वाभिमान को दर्शाता है। यह रूप हमें स्वाभिमानी बने रहने की प्रेरणा देता है, फिर चाहे हमारे समक्ष कितने ही आत्मीय परिजन क्यों न हों, हमें अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करना चाहिए।
ब्रह्मचारिणी- नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा का विधान है। ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां का ये रूप अपने भक्तों को अनंत फल देने वाला है।भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए मां ब्रह्मचारिणी ने सौ साल लंबा कठिन तप और व्रत किया। कई वर्षों तक माता सिर्फ फल-फूल खाकर ही तपस्या में लीन रहीं. उनके इस कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें मनोकामना-पूर्ति का वरदान दिया। माँ दुर्गा का यह रूप हमें कठिन श्रम करते हुए अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहने की प्रेरणा देता है। माँ के इस रूप से हमें शिक्षा मिलती है कि जीवन में चाहे कितनी ही बाधाएँ क्यों न आए, हमें अपने संकल्प पर अडिग रहना चाहिए।
चंद्रघंटा- नवरात्रि पूजन के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा का महत्त्व है। दैत्यों का आतंक बढ़ने पर माँ को चंद्रघंटा का रूप धारण करना पड़ा।महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था, जब देवताओं को इस विषय में पता चला तो वे घबराकर ब्रह्मा, विष्णु व महेश की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर त्रिदेव को दैत्यों के प्रति क्रोध उत्पन्न हुआ, इसी क्रोध के परिणामस्वरूप उनके मुख से ऊर्जा निकली। इसी ऊर्जा से देवी चंद्रघंटा का स्वरूप अस्तित्व में आया जिसने महिषासुर का वध कर देवताओं को अभय प्रदान किया। माँ के इस स्वरूप के मुखमण्डल पर सौम्य मुसकान व आभा रहती है, जो हमें जीवन में शांत एवं मधुर रहने की प्रेरणा देता है। साथ ही उनका चंडी अवतार हमें सीख देता है कि हमें हमेशा शांत एवं सरल जीवन जीना चाहिए परन्तु जब स्वयं पर या अपने प्रियजनों पर कोई भी आपदा आए तो हमें निडर होकर परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।
कूष्माण्डा- माँ आदिशक्ति का चौथा रूप है कूष्माण्डा। माना जाता है कि देवी के हाथ में जो अमृत कलश है उससे वह अपने भक्तों को दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव-जंतु नहीं था तो माँ दुर्गा ने अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। माँ का यह रूप स्त्री के जगत जननी स्वरूप की व्याख्या करता है। देखने में भले ही स्त्री की काया कोमल हो लेकिन सृष्टि-रचना जैसा कठिन कार्य स्त्री के अस्तित्व के कारण ही संभव हो पाया है।
स्कंदमाता- मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता कहा जाता है। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। साथ ही साथ माँ अपने पुत्र कार्तिकेय की गुरु भी हैं। माँ का यह गुरु रूप स्त्री की विलक्षण प्रतिभा को भी दर्शाता है। माँ का यह स्वरूप सभी स्त्रियों को अपनी संतान का प्रथम गुरु बनने की प्रेरणा भी देता है क्योंकि माँ ही अपने शिशु की प्रथम गुरु होती है, उसके द्वारा दी गई महत्त्वपूर्ण व सार्थक शिक्षा संतान का भविष्य उज्ज्वल बना सकती है।
कात्यायनी माता- नवरात्रि पूजन के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। महर्षि कात्यायन उन्हें पुत्री रूप में प्राप्त करने की चाह रखते थे तो दूसरी तरफ महिषासुर का आतंक बढ़ता जा राजा था। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से बचाने तथा कात्यायन ऋषि की मनोकामना पूर्ति हेतु माँ ने कात्यायनी रूप में अवतार लिया। महिषासुर का वध करने के कारण माँ को ‘महिषासुर-मर्दिनी’ के नाम से भी जाना जाता है। माँ का पुत्री रूप में अवतार लेकर महिषासुर का वध करना नारी की आंतरिक शक्तियों को दर्शाता है। माँ का यह रूप प्रमाणित करता है कि स्त्री चाहे किसी भी रूप में हो वह अबला नहीं सबला है। स्त्री की शक्ति व प्रतिभा का कोई सानी नहीं है।
कालरात्रि-कालरात्रि माता को देवी दुर्गा के नौ रूपों में से सातवां स्वरूप कहा गया है। नवरात्र के सातवें दिन माता के इसी स्वरूप को ध्यान में रखकर इनकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि शुंभ-निशुंभ और उसकी सेना को देखकर देवी को भयंकर क्रोध आया और इनका वर्ण श्यामल हो गया। इसी श्यामल स्वरूप से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। माँ कालरात्रि ने युद्ध में चंड मुंड के बालों को पकड़ कर खड्ग से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया था। चंड-मुंड का वध करने के कारण माँ को चामुंडा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
महागौरी- नवरात्रि पूजन के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा-आराधना की जाती है। महागौरी अमोघ फल देने वाली हैं। माता ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था, जिसकी वजह से इनके शरीर का रंग काला पड़ गया। भगवान शिव ने इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर इनके शरीर को पवित्र गंगाजल से धोकर कांतिमय बना दिया। इससे उनका रूप गौर-वर्ण हो उठा और वे महागौरी कहलाईं। इनके पूजा से भक्तों के तमाम कलमुष धूल जाते हैं और इनकी ही कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। महागौरी का यह रूप बहुत ही शांत व सौम्य है। माँ का यह रूप जीवन में संयमित रहकर हर परिस्थिति का सामना करने की सीख देता है। माँ का यह रूप हमें सिखाता है कि नित्य जीवन की उलझनों से विचलित बजाय यदि शांत एवं संयमित रहकर इनसे निपटा जाए तो बड़ी आसानी से विकट से विकट समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
सिद्धिदात्री- माँ दुर्गा का सिद्धिदात्री स्वरूप हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। नवरात्रि पूजन के अंतिम दिन इनकी उपासना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं देवी की कृपा से सिद्धियां प्राप्त की थीं। इनकी पूजा करने से भक्त को सभी सिद्धियां, अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि और नव निधियों की प्राप्ति होती है। इन्हीं माता के कारण भगवान शिव को अर्धनारीश्वर नाम मिला, क्योंकि इनके कारण ही भगवान का आधा शरीर देवी का बना। माँ सिद्धिदात्री का यह रूप सभी सिद्धियों को देने वाला है। माँ का यह रूप स्त्रियों के परहित के गुण को उल्लेखित करता है। स्त्रियां भी अपने घर-परिवार के कल्याण के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती हैं।
तो आइये इस नवरात्रि हम भी माँ के नौ रूपों की आराधना कर अपने जीवन में सुख-शांति व खुशहाली लाएँ। नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन कर माँ से विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त करें। परन्तु साथ ही यह संकल्प भी लें कि माँ की आराधना एवं कन्या पूजन सिर्फ नवरात्रि के नौ दिन ही सिमटकर न रह जाएँ। इस नवरात्रि हम सब यह प्रण भी करें कि नवरात्रि के बाद भी हम अपने समाज की महिलाओं और कन्याओं का पूर्ण सम्मान करेंगे तथा आज के समय में मौजूद आसुरी शक्तियों से उनकी रक्षा भी करेंगे।
लक्ष्मी अग्रवाल