दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) के ‘अनुसंधान और परामर्श प्रकोष्ठ’ द्वारा ‘दक्षिणा फाउण्डेषन’ के सहयोग से गुरु नानक देव के 550वें प्रकाशोत्सव पर ‘गुरु नानक देव : जीवन और दर्शन’ विषय पर अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. हरमोहिन्दर सिंह बेदी ने कहा कि मध्य युग में गुरु नानक को पूरे एशिया और मध्यपूर्व में संवाद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने कहा कि यदि पूरी दुनिया के एकजुट करना है तो गुरुबाणी के शब्दों को अपने जीवन में उतारना होगा।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ. रवीन्द्र कुमार गुप्ता ने कहा कि पावन गुरुओं में भक्ति और शक्ति के समन्वय की अवधारणा को गुरु नानक देव से ग्रहण किया। इस अवसर पर दक्षिणा फाउण्डेशन की संस्थापिका श्रीमती उपासना अग्रवाल ने सामाजिक और नैतिक मूल्यों के लिए गुरु नानक देव की शिक्षाओं के कार्यान्वयन पर बल दिया। संगोष्ठी में बीज वक्ता के रूप में उपस्थित विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने गुरु नानक देव को एक करिई व्यक्तित्व के रूप में वर्णित करते हुए कहा कि उनके सिद्धांतों भारतीय ही नहीं वरन् विश्व में आदर्श समाज के लिए उपयोगी हैं। उन्होंने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम की सांस्कृतिक भावना को गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं के माध्यम से यथार्थ किया है।
उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए संगोष्ठी के संयोजक डॉ. हरीश अरोड़ा ने गुरु नानक देव पर आयोजित इस संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कुछ लोग जन्म लेते हैं लेकिन कुछ लोग अवतरित होते हैं। गुरु नानक देव उन अवतारी महापुरुषों में से हैं जिन्होंने सम्पूर्ण एशिया और मध्यपूर्व विश्व का भ्रमण करते हुए भारतीय संस्कृति के मूल स्वर ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को विश्व में प्रचारित किया। इस अवसर पर सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित भारत सरकार के अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य सरदार मंजीत सिंह ने गुरु नानक देव के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रो. कुमुद शर्मा ने बाजा़रवाद के दौर में गुरु नानक देव की वाणियों में निहित मूल्यों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। इस सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. कुलदीप कौर पाहवा और प्रो. नारंग ने गुरु नानक देव की बाणी में उनके दार्शनिक चिन्तन पर विचार करते हुए संत साहित्य परम्परा में उनके योगदान पर अपने विचार रखे। चौथे सत्र में प्रो. पूरनचंद टण्डन ने गुरु नानक देव के एक ओंकार के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यही ब्रह्म के शाश्वत रूप है। इस सत्र में प्रो. सुशील शर्मा ने भारतीय जीवन मूल्यों के संदर्भ में गुरु नानक की वाणी की उपयोगिता की चर्चा की।
संगोष्ठी के समापन सत्र में डॉ. हरप्रीत कौर ने मुख्य अतिथि के रूप में गुरु नानक देव के विचारों, मूल्यों, आध्यात्मिकता, कर्म, निस्वार्थ सेवाओं आदि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान समय में शांति की तलाश गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं से सहज रूप से प्राप्त की जा सकती है। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. रवीन्द्र कुमार गुप्ता ने कहा कि इस संगोष्ठी की वास्तविकता सफलता तभी होगी जब गुरु नानक देव के विचारों और शब्दों को समाज अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतार सकं। अंत में संगोष्ठी की समन्वयक डॉ. रुचिरा पाठक ने आमंत्रित सभी वक्ताओं, अतिथियों और विद्यार्थियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने प्रकोष्ठ की विभिन्न गतिविधियों पर भी प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के विभिन्न तकनीकी सत्रों में डॉ. संध्या गर्ग, डॉ. विनयनीत कौर, डॉ. दया अग्रवाल, डॉ. मनीषा बत्रा की अध्यक्षता में 80 से अधिक शोध पत्रों को प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर डॉ. संगीता गुप्ता, डॉ. श्रुति विप, डॉ. विपिन प्रताप सिंह, डॉ. मीना शर्मा, डॉ. आशा रानी, डॉ॰ ओंकार लाल मीना, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. डिम्पल गुप्ता, डॉ. श्रुति रंजना मिश्रा, डॉ॰ बलवंत, डॉ॰ पुनीत चाँदला, डॉ॰ बीना मीना, डॉ. प्रियंका मिश्रा, डॉ. गरिमा, उदय, नितीश आदि ने सहभागिता की।