हर साल,सितम्बर का महीना, सरकारी कार्यालयों के लिए कुछ विशेष होता है।अंग्रेजों से मिली,स्वतंत्रता के उपरांत,14 सितम्बर,
1949 को ‘हिंदी’ को केंद्र की राजभाषा घोषित किया गया था।यह बात अलग है कि आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के बाद भी,व्यवहार में अघोषित रूप से,राजभाषा अभी भी अंग्रेजी ही है।जैसे हर वर्ष श्राद्ध पक्ष आने पर,हम अपने पूर्वजों की याद में,ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व उन्हें कुछ दान-दक्षिणा देकर, समझते हैं कि हमने बहुत बड़ा महान कार्य कर लिया,ठीक उसी प्रकार कुछ सरकारी कार्यालयों के नौकरशाह,हिंदी दिवस अथवा पखवाड़े के दौरान-भाषण,वाद-विवाद या कविता-पाठ प्रतियोगिता आयोजित करके समझते हैं कि उन्होंने ‘राजभाषा हिंदी’ की बहुत सेवा कर दी।
हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को लेकर,सरकारी नौकरशाह बेशक गंभीर न हों,लेकिन कुछ स्वयंसेवी संस्थायें व उनके कार्यकर्ता इस विषय पर पूरी तरह गंभीर हैं।उनकी यह गंभीरता, उनके व्यवहार व कार्यकलापों में भी नज़र आती है।इसी तरह की एक स्वयंसेवी संस्था है-‘हिंदुस्तानी भाषा अकादमी।’ यह संस्था पिछले कई वर्षों से हिंदी ही नहीं,हिंदुस्तान की सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन का कार्य कर रही है।
गत,24 सितंबर,2022 को,इस संस्था ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में,दिल्ली के जनपथ में स्थित ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला-केंद्र’ में एक दिन के ‘भाषा-महोत्सव’का आयोजन किया।इस महोत्सव में हिंदी भाषा से जुड़े अनेक विषयों पर गंभीरता से चिंतन किया गया।पूरे दिन तक चले कार्यक्रम को,तीन सत्रों में किया गया।
कार्यक्रम का प्रारंभ मंच पर उपस्थित अतिथियों व अकादमी के सदस्यों के द्वारा दीप-प्रज्वलन से किया गया।सरस्वती वंदना का पाठ कवि व संगीत शिक्षक श्री रामलोचन ने किया।संस्था द्वारा प्रकाशित,भाषा पर केंद्रित पुस्तक
‘भाषा-गत-अनागत’ तथा तिमाही पत्रिका
-‘हिंदुस्तानी भाषा-भारती’ के ताजा अंक का विमोचन भी किया गया।
उद्घाटन व परिचर्चा सत्र का प्रारंभ करते हुए,अपने स्वागत वक्तव्य में संस्था के अध्यक्ष सुधाकर पाठक ने कहा कि उनकी संस्था एक स्वयं वित्तपोषित संस्था है,जो हिंदी ही नहीं, सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रयासरत है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि ‘हिंदुस्तानी भाषा अकादमी’ अपने सीमित संसाधनों के बावजूद,भारतीय भाषाओं के क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रही है।वे भविष्य में भी संस्था के इस कार्य में सहयोग करते रहेंगें।उन्होंने हिंदी भाषा से जुड़े,कई रोचक प्रसंग भी दर्शकों से साझा किये।
परिचर्चा व प्रश्नोत्तर सत्र भी काफी ज्ञानवर्धक रहा।दिल्ली पुलिस के युवा उपायुक्त आनन्द कुमार मिश्र ने ‘युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण एवं रोजगार में हिंदी का महत्व’, बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ के निदेशक व भाषा वैज्ञानिक ‘बालेंदु शर्मा दधीच’ ने ‘प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर हिंदी’ तथा वरिष्ठ साहित्यकार व आकाशवाणी के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डॉ लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने’भाषा,साहित्य व संस्कृति’ पर अपने अपने वक्तव्य दिये।दिल्ली व आसपास के महाविद्यालयों से कार्यक्रम में शामिल हुए विद्यार्थियों व दर्शकों ने,विषय से जुड़ी अपनी शंकाओं पर विद्वानों से सवाल भी पूछे।उक्त तीनों विद्वानों ने उपस्थित विद्यार्थियों को आश्वस्त किया कि हिंदी भाषा एक वैज्ञानिक व बहुत ही समृद्ध भाषा है।इंटरनेट व प्रौद्योगिकी ने हिंदी को भी काफी समृद्ध किया है। इसमें भी रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखना है।जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए आगे बढ़ना है।
मध्यान्तर के बाद,विभिन्न महाविद्यालयों से चयनित 30 विद्यार्थियों की भाषण-प्रतियोगिता आयोजित की गई।इस प्रतियोगिता में, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत,’कालिंदी महाविद्यालय की ‘विशाखा’ को प्रथम,
आत्माराम सनातन धर्म महाविद्यालय के अभ्युदय मिश्रा को द्वितीय व नोएडा के आई एम एस लॉ कॉलेज के मनीष कुमार झा को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। सात अन्य को भी प्रोत्साहन पुरस्कारों से नवाजा गया।अन्य सभी सहभागियों को भी, सहभागिता प्रमाणपत्र दिए गये।
इस सत्र में-चिंतक व ‘प्रणाम भारती’ के अध्यक्ष दीपक दुबे,गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग के उपसंपादक डॉ धनेश द्विवेदी तथा ‘हिंदी अकादमी:दिल्ली के सचिव जीत राम भट्ट विशेष अतिथि के रूप में मौजूद थे।भाषण-प्रतियोगिता के निर्णायक-मंडल में शामिल थे-राज्यसभा सचिवालय की संपादक डॉ ज्योत्स्ना शर्मा, शिक्षाविद व साहित्यकार डॉ रामकिशोर यादव व डॉ हेमा द्विवेदी।