होली के बदलते रंग 

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laxmi aggrawal

होली प्रेम से जुड़ी एक ऐसी अभिव्यक्ति का नाम है जो हमें नई सुगंध देती है। नई उमंग, नई तरंग, नई सुबह और सब कुछ नए रंगों से सजा होना ही होली की पहचान है। होली रंगों का त्योहार है, हंसी-खुशी का त्योहार है लेकिन आज होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, भांग-ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक-संगीत की जगह फिल्मी गानों व डिस्को का प्रचलन बढ़ गया है। आजकल के बच्चे भी इस बदलते और आधुनिक होते माहौल के बीच होली के रंगों से दूर होते जा रहे हैं। देखती हूँ तो आश्चर्य होता है कि आजकल के बच्चों को होली जैसे मस्ती के त्योहार में कोई दिलचस्पी ही नहीं रह गयी है उनके लिए तो मोबाइल और लैपटॉप पर गेम खेलना ही जीवन जीने के सही मायने है। बच्चों का यह व्यवहार और त्योहारों से दूरी सिर्फ हमारे त्योहारों की रोनक ही खत्म नहीं कर रहे बल्कि बच्चों से उनका बचपन भी छीन रहे हैं। इसलिए त्योहार मनाना और खासकर होली जैसा त्योहार मनाना सिर्फ हमारी संस्कृति की रक्षा के लिए ही नहीं बल्कि बच्चों के सर्वांगीर्ण विकास के लिए भी जरूरी है।

आज होली केवल दिखावे का त्योहार बन कर रह गई है। आज यह त्योहार अपनी पुरानी पहचान को पूरी तरह से खो चुका है। आजकल केवल होली के रंग ही नहीं बदले बल्कि इस त्योहार के मायने भी पूरी तरह बदल चुके हैं। प्रेम और सद्भाव के इस पर्व को हमने नफरत व घृणा का पर्व बना दिया है। युवाओं के लिए तो यह पर्व लड़कियों के साथ छेडख़ानी का सुनहरा अवसर बनकर रह गया है। होली के नाम पर लड़कियों को परेशान करना आज आम बात हो गई है। नशीले पदार्थों का सेवन करके होली की आड़ में एक-दूसरे को परेशान करना, अपशब्द कहना इस त्योहार की पहचान बनकर रह गई है। किसी से बदला लेने के लिए इस दिन उस पर रंग की जगह कीचड़ फेंकना इस पर्व की पवित्रता को खत्म करता जा रहा है। जुआ और सट्टेबाजी की परंपरा भी इस दिन की पहचान बनती जा रही है। होली प्रेम व सद्भाव का ही पर्व बना रहे इसके लिए जरूरी है कि हम होली के रंगों को न बदलने दें और फिर से एक ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास करें जिसमें वही पुराना प्रेम, भाईचारा व सौहार्द विकसित हो सके जो कि हमारे इस पर्व की पहचान थी। नहीं तो हमारा ये पर्व अपना वास्तविक रूप खो देगा। अपने त्योहारों के वास्तविक रंगों से अलग होने के बाद अपनी सभ्यता व संस्कृति को बनाए रखना भी आसान नहीं होगा। इसीलिए हम सबकी ये पुरजोर कोशिश होनी चाहिए कि हम इस त्योहार को इसके रंगों से दूर न करें और मिल-जुलकर प्यार से सभी के साथ इस पर्व के रंग व खुशियां बांटें।

लक्ष्मी अग्रवाल

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