“प्रबोध कुमार गोविल की हैट्रिक”

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देहाश्रम का मनजोगी, रेत होते रिश्ते, जल तू जलाल तू, ज़बाने यार मनतुर्की और अका़ब जैसे लोकप्रिय उपन्यासों के लेखक सुविख्यात साहित्यकार प्रबोध कुमार गोविल ने फ़िल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के जीवन पर आधारित क़िताब “झंझावात में चिड़िया” लिखी है जिसमें आरंभ के कई अध्यायों में दीपिका के पिता बैडमिंटन के अंतरराष्ट्रीय स्टार प्रकाश पादुकोण के जीवन पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
हाल ही में प्रबोध जी पुराने  ज़माने की मशहूर अभिनेत्री साधना के जीवन पर आधारित उपन्यास “ज़बाने यार मनतुर्की” भी लिख कर चुके हैं, जो प्रकाशित होते ही बेहद चर्चित हुआ। आज के पेचीदा और प्रतिस्पर्धी समय में युवा अभिनेत्री आज की बड़ी स्टार दीपिका पादुकोण की जीवनी लिखने के पीछे एक गंभीर रचनाकार और उपन्यास लेखक की कौन सी सोच रही होगी? क्योंकि बिना कारण तो कोई किसी को चिट्ठी भी नहीं लिखता। स्वयं प्रबोध कुमार गोविल इस सवाल के संदर्भ में अपना स्पष्टीकरण देते हुए बताते हैं कि उनका ये चयन बेवजह नहीं है। उन्होंने इस कैरेक्टर को एक ख़ास मकसद से ही रेखांकित किया है।
असल में पिछले कुछ दशकों से जीवन के लगभग हर क्षेत्र में ही एक भेड़- चाल सी चल पड़ी थी कि एक सफ़ल इंसान अपने बच्चों को भी वही बनाना चाहे जो वह खुद हो। वैसे इसमें कुछ गलत तो नहीं है किंतु  नेता ये चाहने लगा कि मेरे बाद मेरी कुर्सी मेरी औलाद को मिले, इसी तरह डॉक्टर, वकील, व्यापारी, खिलाड़ी, सिने कलाकार आदि सभी की ये ख्वाहिश होने लगी कि हमारी कामयाबी या गुडविल हमारे बच्चों के लिए ही काम आ जाए, और वे आसानी से बिना संघर्ष किए हमारे ही प्रोफेशन में आ जाएं। इसका नतीजा यह हुआ कि समाज से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ओझल होने लगी, मध्यम वर्गीय नई पीढ़ी के लिए रास्ते बंद होने लगे। ऐसे लोग भी, जिनकी संतान काबिल हो या न हो, इस दौड़ में शामिल हो गए और ऐसे में उनकी विरासत पर साम – दाम- दण्ड – भेद या “बाय हुक ओर क्रुक” उनके ही कब्जे होने लगे।
ऐसे में दीपिका पादुकोण लेखक को एकदम अलग सोच और आत्मविश्वास से आती हुई लड़की दिखाई दी।
दीपिका विश्वविख्यात बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण की सुपुत्री भी हैं और स्वयं एक बेहतरीन बैडमिंटन खिलाड़ी भी। किंतु उन्होंने सोचा कि यदि वे बैडमिंटन को ही अपनी ज़िंदगी बनाती हैं तो ये कहा जायेगा कि वो अपने पिता की वो विरासत संभाल रही हैं जो उन्हें पिता के कारण ही आसानी से हासिल हो गई। अतः उन्होंने खेलों में कई आरंभिक सफलताओं के बावजूद मॉडलिंग और फ़िल्मों का बिल्कुल नया क्षेत्र चुना और उसमें भी कामयाबी के झंडे गाढ़े। उनकी इसी खुद्दारी और अपने ज़मीर की कीमत समझने की बात ने उपन्यासकार को प्रभावित किया और उन्होंने पर्याप्त शोध व अध्ययन के बाद उनके सफ़र को कलमबद्ध किया है।
इस रोचक और स्तरीय क़िताब को नई दिल्ली व बिजनौर के प्रख्यात प्रकाशन समूह “वनिका पब्लिकेशंस” ने छापा है। किताब में बीच – बीच में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के बचपन से लेकर अब तक के कुछ नयनाभिराम चित्र भी शामिल किए गए हैं। इस पुस्तक को दुनिया भर के उन पिताओं को समर्पित किया गया है जो अपनी बेटियों को उनके जीवन में उनसे भी बड़ी उपलब्धियों के साथ देखना चाहते हैं। यह एक आदर्श सोच है जिसकी आज के समय में और भी ज्यादा अहमियत है क्योंकि आज महिलाओं को जीवन में पग – पग पर कठिन चुनौतियां मिल रही हैं।
फ़िल्म जगत में तो इतनी जबरदस्त प्रतियोगिता है कि आज बॉलीवुड में सफ़ल होने वाले किसी कलाकार की लोकप्रियता केवल कुछ ही साल टिकने वाली रह गई है। वैकल्पिक मंच नित नए सितारों को बॉलीवुड में ला रहे हैं।
इस किताब में दीपिका पादुकोण के जीवन के इस बुनियादी कदम से ही बात शुरू की गई है कि वो परिवार के खेल- जगत में ढले हुए माहौल में एक सफ़ल खिलाड़ी के रूप में शुरुआत करके भी किस तरह फ़िल्मों में आईं और देखते- देखते उन्होंने शिखर की अभिनेत्रियों में अपनी जगह बनाई।
“झंझावात में चिड़िया” अपने शीर्षक के अनुरूप दीपिका के जीवन के उन मोड़ों पर भी संजीदगी से बात करती है जो सचमुच उनके लिए एक कठोर इम्तेहान की तरह ही आए। जैसे उनकी कुछ ऐतिहासिक भूमिकाओं को जाति – वर्ग के मान- अपमान से जोड़ कर जन- आक्रोश का सामना करना पड़ा। वे फिल्मकारों का बॉयकॉट करने वाली मानसिकता के लोगों के निशाने पर भी आईं। इसके अलावा उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी तनाव भी झेले जब उन्हें डिप्रेशन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। दीपिका के सरोकार हॉलीवुड फिल्मों में हाथ आजमाने के भी रहे। और इस सबसे बढ़ कर उनके दिल के किसी कोने में प्रोड्यूसर बनने की चाहत भी बनी रही। अपनी विलक्षण अभिनय प्रतिभा तथा धैर्य के साथ व्यावहारिक दृष्टिकोण ने उन्हें हर जगह सफ़ल घोषित किया। उन्हें कई बड़े पुरस्कार भी हासिल हुए। और अंततः वे अपनी ही भांति बेहतरीन और अत्यंत सफल एक्टर रणवीर सिंह के साथ जीवनसाथी के रूप में भी आबद्ध हुईं।
पुस्तक इस बात का भी खुलासा करती है कि दीपिका केवल फ़िल्मों में ही नहीं बल्कि निजी ज़िंदगी में भी सामाजिक कार्यों में रुचि रखती हैं और इसका एक प्रमाण उन्होंने तब दिया जब एसिड विक्टिम लड़कियों की ज़िंदगी पर आधारित फ़िल्म “छपाक” उन्होंने स्वयं मेघना गुलज़ार के साथ मिल कर बनाई। वे सामाजिक संदर्भों के लिए कार्यरत एक एनजीओ से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं।
अपने फिल्मी करियर में उनका मुकाबला प्रियंका चोपड़ा, कैटरीना कैफ, विद्या बालन जैसी समर्थ और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों से हुआ। बावजूद इसके उन्होंने एक के बाद एक भव्य और सफ़ल फिल्में देकर टॉप पर जगह बनाई।
प्रबोध कुमार गोविल बताते हैं कि उन्हें अभिनेत्री साधना की जीवनगाथा लिख देने के बाद कला फिल्मों की अद्भुत एक्ट्रेस स्मिता पाटिल, देश की पहली मिस एशिया रही एक्ट्रेस ज़ीनत अमान और आशा पारेख पर लिखने का ख्याल भी आया था। आशा पारेख की जीवनी “द हिट गर्ल” लिखी ही जा चुकी थी और आशा जी को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड मिल जाने के बाद तो ये और भी बड़ा काम हो गया । लेकिन नई पीढ़ी के लिए नई सोच के साथ मैदान में उतरी दीपिका ने उनका सर्वाधिक ध्यान खींचा।
दीपिका पादुकोण पर लिखी गई इस क़िताब में फ़िल्म जगत की आधुनिक प्रवृत्तियों पर भी पर्याप्त विमर्श किया गया है। आज की फिल्म – निर्माण की तकनीकी सुविधाओं और अन्य पक्षों पर व्यापक प्रकाश डाला गया है। साथ ही बदलते समय के साथ फिल्मों के गीत- संगीत, छायांकन तथा व्यावसायिक पक्ष को भी क़िताब में कसौटी पर कसा गया है।
ओम शांति ओम, चेन्नई एक्सप्रेस, गोलियों की रामलीला रासलीला, बाजीराव मस्तानी, पद्मावत जैसी भव्य फ़िल्मों के निर्माण ने दीपिका के लिए एक से बढ़कर एक भूमिकाएं मुहैय्या करवाईं। दीपिका ने इनका निर्वाह भी अनुशासनबद्ध अभिनय- पटुता और सुलझे हुए मानसिक कौशल से किया।
दीपिका पादुकोण का गहरा जुड़ाव उनके आकर्षक व्यक्तित्व के कारण मॉडलिंग से भी रहा। इस क्षेत्र की बारीकियों पर बात करते हुए लेखक ने अपने पत्रकारिता जगत के अनुभवों का वाइब्रेंट इस्तेमाल किया है जो उनके परिवेश – कौशल का परिचायक है।
दीपिका की ये जीवनगाथा ऐसे समय में लिखी गई है जबकि वे अभी भी पर्याप्त लोकप्रियता के साथ बड़े- बड़े प्रोजेक्ट्स से जुड़ी हुई हैं अतः हो सकता है भविष्य में लेखक को इस किताब के सीक्वल पर भी विचार करना पड़े। वैसे भी कहा जाता है कि बॉलीवुड में अभिनेत्रियों के एक्टिंग के दम पर भीड़ खींच पाने के सामर्थ्य की असली परीक्षा उनके विवाह के उपरांत ही हो पाती है। कई बेहतरीन अभिनेत्रियां ऐसे में मुख्य भूमिकाओं से निकल कर सहायक भूमिकाओं की ओर जाती हुई देखी गई हैं।
शाहरुख खान और जॉन अब्राहम के साथ अपनी अपकमिंग मूवी “पठान”  से जुड़ी दीपिका के सामने भी अब कंगना रनौत और आलिया भट्ट जैसी हीरोइनें मुकाबले में हैं। बॉलीवुड में टॉप एक्ट्रेसेज के मामले में आज भी वही मुहावरा कारगर है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं आतीं। दर्शक बुलंदी के शिखर पर एक ही हीरो या हीरोइन को जगह देते हैं।
“झंझावात में चिड़िया” बेहद कसी हुई भाषा में लिखी गई है और इसका समापन भी एक दैवी आपदा “कोविड संक्रमण” से उत्पन्न विभीषिका के साथ ही किया गया है जिसने पूरे फिल्म जगत को हिला कर रख दिया था। कई प्रतिभाशाली सितारे इस दौर में काल – कवलित हुए और फिल्म निर्माण लगभग ठप्प ही हो गया। कई उम्मीदें और सपने धराशाई हो गए जिनसे उबरने में बॉलीवुड को काफ़ी वक्त लगेगा। किताब में इस विभीषिका और उसके परिणामों का मार्मिक चित्रण है।
लेखक ने तत्कालीन गतिविधियों के बहाने विचारधारा जनित प्रभावों पर भी संकेत किया है जब दीपिका की फ़िल्म पद्मावत के निर्माता- निर्देशक संजय लीला भंसाली को राजस्थान में शूटिंग लोकेशन पर अवरोधों का सामना करना पड़ा। इसका चित्रण भी किताब में यत्र – तत्र देखने को मिलता है।
पुस्तक को इस बात का पूरा लाभ मिला है कि इसे एक साहित्यिक रचनाकार ने अंजाम दिया है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि दीपिका पादुकोण स्वयं एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न अभिनेत्री हैं जिनके प्रदर्शन सरोकारों में केवल नई पीढ़ी ही नहीं बल्कि पुरानी पीढ़ी भी जिज्ञासा दर्शाएगी।
लेखक ने किताब के शीर्षक को लेकर एक रोचक बात कही है कि पिता प्रकाश पादुकोण के जीवन में “चिड़िया”(शटल कॉक) उनके बल्ले के शॉट्स के झंझावात से कांपती रही किंतु दीपिका के ज़माने में आए कई झंझावात उनके धैर्य व समझदारी की चिड़िया ने अपनी लगन से रोक दिए! सभी के पढ़ने योग्य इस स्तरीय क़िताब के लिए लेखक की प्रशंसा की जानी चाहिए।
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पुस्तक : झंझावात में चिड़िया (दीपिका पादुकोण की कहानी)
लेखक : प्रबोध कुमार गोविल
प्रकाशक : वनिका पब्लिकेशंस
पहला संस्करण: 2022
मूल्य : 230 रू (पेपरबैक)
पृष्ठ संख्या : 110
समीक्षक : हिमांशु जोनवाल ( युवा लेखक व समीक्षक, जयपुर)

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