रिपोर्ट (विनोद पाराशर)
नई दिल्ली, 2 फरवरी 2023 को आई.टी.ओ., दिल्ली के निकट आई. सी. सी. आर. के आजाद भवन सभागार में, प्रवासी भारतीयों के एक कार्यक्रम का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद और वैश्विक हिंदी परिवार के संयुक्त तत्वाधान में, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद की ओर से किया गया | इस कार्यक्रम में प्रवासी लेखकों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया, जिनमें मुखय रूप शामिल थे -सुश्री दिव्या माथुर (यू.के.), सुश्री पुष्पा भारद्वाज वुड (न्यूजीलैंड), सुश्री अनीता कपूर (अमेरिका), श्री इंद्रजीत शर्मा (अमेरिका) और सुश्री जय वर्मा (यू.के.)।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि लेखक और पत्रकार श्री बी.एल.गौड़ ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि-जो भारतीय विदेशों में जाकर बस गए हैं,वे भारत से तो चले गए लेकिन भारतीयता को दिल से नहीं निकाल पाए, भारत अभी भी उनके अंतर्मन में मौजूद है। चर्चित कथाकार सुश्री ममता कालिया विशिष्ट अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में विराजमान थीं, उन्होंने कहा कि हम भारतीय जिस भी देश में पहुंचते हैं वहीं पर अपना एक हिंदुस्तान बसा लेते हैं। उन्होंने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा कि वे हम सब भारतीयों के लिए प्रवासी नहीं वासी ही हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में आमन्त्रित, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक, श्री नारायण कुमार, डीन, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रोफेसर चंद्रशेखर और प्रवासी भारतीय साहित्य शोध केंद्र भोपाल के सलाहकार श्री जवाहर कर्णावत ने भी प्रवासी लेखकों के लेखन के संबंध में अपने अपने विचार व्यक्त करें ।
ब्रिटेन से पधारी सुश्री जय वर्मा ने अनोखे मानवीय रिश्तो के संबंध में अपनी बात कविता के माध्यम से कुछ इस तरह से कही-
‘अपने घर पहुंचकर कैसे अनोखे होते है ये रिश्ते’
सुश्री अनीता कपूर विदेशी भाषा के शब्दों को
उधार लिए हुए समझती हैं। वे उधार के शब्दों से रचना नहीं करना चाहतीं । अपनी भाषा के शब्दों से रचना करने पर उन्हें जो सुख की अनुभूति होती है वह उसे अपनी कविता में कुछ इस प्रकार से व्यक्त करती हैं-
‘उधार के शब्दों से
मुझे रचना नहीं करनी थी,
भाषा ने आज करवट बदली है
प्रवास में मेरा नया जन्म हुआ है’
पिछले 42 वर्ष से न्यूजीलैंड में रह रही सुश्री पुष्पा भारद्वाज वुड हिंदी में अपने साहित्यिक लेखन वह अनुवाद कार्य से हिंदी का परचम लहरा रही हैं। उन्होंने हिन्दी में अपनी रचना की शुरुआत का कारण अपने भीतर हिन्दी को जीवित रख पाने की छटपटाहट को बताते हुए अपनी ‘मुखौटा’ शीर्षक से कविता पढ़ते हुए कहा-
‘मुखोटे का
यही तो फायदा है की हम
सभी को देख सकते हैं
लेकिन हमारे चेहरे की शिकन को
कोई नहीं देख सकता’
सुश्री दिव्या माथुर ने ‘तिलिस्म’ शीर्षक से अपने एक उपन्यास के कुछ महत्वपूर्ण अंश सुनाएं व अमेरिका से ही पधारे श्री इंद्रजीत शर्मा ने विदेशों में घूमते हुए भारतीय भाषा व संस्कृति को लेकर जो अनुभव हुए उनके संबंध में,अपने रोचक संस्मरण साझा किये।
केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष, श्री अनिल शर्मा जोशी जी के सानिध्य में,यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सभी मेहमानों का आभार व्यक्त किया तथा विदेशों में रहते हुए भाषा और संस्कृति को लेकर उन्हें जो अनुभव हुए, वह भी सभी से साझा किए।
कार्यक्रम का कुशल संचालन, लोकप्रिय कवयित्री सुश्री अलका सिन्हा व इसका संयोजन वरिष्ठ कवि नाटककर्मी व अभिनेता श्री विनय शील चतुर्वेदी ने किया।