– ओमप्रकाश प्रजापति
कहते है कि हमारा चेहरा, हमारा आईना होता है। पहले के जमाने में घर के बड़े-बुजुर्गों को काफी हद तक चेहरा पढ़ना आता था। लोग चेहरा देख कर समझ जाते थे, कि सामनेवाले व्यक्ति की फितरत क्या है। उसी आधार पर नगला भीमसैन, विकास क्षेत्र सिढपुरा, कासगंज उत्तरप्रदेश निवासी ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ ने चेहरा पढ़ने की शिक्षा तो प्राप्त की, परन्तु कुछ लोग चेहरे पर चेहरा लगाकर रखते हैं उन चेहरों को पढ़ने काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था, उन्हें पढ़ने की शिक्षा अभी डॉ.चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ प्राप्त नहीं की। बल्कि उनपर एक निबंध संग्रह पुस्तक ही लिखकर तैयार की, साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है। यह संग्रह जीवन विवेक की यात्रा एवं जीवन व्यवहारों का केंद्र है। यह निबंध संग्रह उन लोगों के लिए भी एक आदर्श पुस्तक है जिन्हें रचनात्मक निबंध लेखन की कला सीखने में विशेष रुचि है। इसमें शब्दों में वर्णनात्मक, चिंतनशील और भावात्मक निबंध शामिल हैं। डॉ.चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ की कृति का मन की यात्रा अपने नाम से ही प्रबुद्ध पाठक के मन की यात्रा को अपना बना लेती है। डॉ.चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ ने इस पुस्तक में बड़ी गहराई से अपनी अनुभूति और सरोकारों की संपुंजित सृष्टि की है। सामयिक विषयों पर लिखे गए इन निबंधों में कहीं- कहीं शब्द-चित्र चलचित्र की आकृति में बदल जाते हैं। डॉ.चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ के विचारों की संपन्नता से सने हैं अनुभूति और अभिव्यक्ति की मार्मिकता, रक्षात्मकता और आत्मीयता स्थापन की दृष्टि से भी ये निबंध संग्रह अपनी अतिरिक्त विशिष्टता लिए अधिक अर्थवान् प्रतीत होता है, चेहरे पर चेहरा में पढ़ने को मिला कि धैर्य में पुरुष का अंग-अंग निखार देता है, जो बोलता नजर आता है जिसमें धैर्य का खजाना है, उसका व्यक्तित्व प्रभावी एवं आकर्षक होता है। गंभीर चिंतन, कोमल भावनाएं धैर्यवान पुरुष में ही संभव है। धैर्य की सीढ़ियां चढ़कर ही कोई व्यक्ति चिंतन के शिखरों को छू सकता है। धैर्य की उंगली पकड़कर ही कोई कठिनाइयों का पथ तय कर सकता है, धैर्य यदि व्यक्ति के साथ है तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं। मैं (ओमप्रकाश प्रजापति)अपने चंद शब्द-चित्र के माध्यम से डॉ.चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ जी द्वारा उनके जीवन के अनुभवी साहित्यिक रंगोली से उत्पन्न हुआ निबंध संग्रह ” चेहरे पर चेहरा” के लिए साधुवाद देता हूँ साथ ही अयन प्रकाशन को भी बधाई जिन्होंने इस संग्रह को प्रभावी ढंग से मूर्त रूप दिया है, आ. बी.एल. आछा जी एवं आ.प्रेमपाल शर्मा जी का विशेष स्नेह इसे प्राप्त हुआ। आपको सादर प्रणाम।