भक्ति-अध्यात्म की धरा पर साहित्य की अलख 

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दिल्ली। खुशनुमा मौसम और खिलते-महकते विभिन्न उपवन के पुष्प, जिनसे गुलजार हुआ वृंदावन साहित्य महोत्सव। ट्रू मीडिया के संस्थापक ओमप्रकाश प्रजापति जी ने दो दिवसीय वृंदावन साहित्य महोत्सव का आगाज किया, जिसमें दिल्ली, हरियाणा, मथुरा, राया, कासगंज, शिकोहाबाद, वृन्दावन, नोएडा, गाज़ियाबाद के साहित्यकार शामिल हुए। इस दो दिवसीय महोत्सव का शुभारंभ 21 जनवरी को हुआ। इस दिन सभी साहित्यकार ट्रू मीडिया कार्यालय पर अपनी यात्रा के लिए एकत्रित हुए। जहाँ से बस ने सुखधाम धर्मशाला के लिए प्रस्थान किया। अपने नियत समय एवं स्थान पर पहुंचकर सभी ने अपने-अपने कमरों में सामान रखकर जायकेदार चाय का आस्वादन कर पहले सफर की थकान को मिटाया और फिर कारवाँ चल पड़ा अपने पहले पड़ाव यानी कि श्री बाँके बिहारी मंदिर की ओर। बिहारीजी की विशेष कृपा की अनुभूति सभी को हुई। बिहारीजी की मनोहर छवि के सुगम दर्शन एवं प्रसाद ने सभी को भक्तिरस से सराबोर कर दिया। बाँके बिहारी का सान्निध्य प्राप्त कर हम सभी बढे अपने अगले पड़ाव यानी कि प्रेम मंदिर की ओर। प्रेम मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। हल्की गुलाबी ठंड में प्रेम मंदिर की जगमग करती रोशनी मंदिर के सौंदर्य में चार चाँद लगा रही थी। प्रेम-मंदिर का सौंदर्य, भक्ति से ओत-प्रोत वृंदावन की आध्यात्मिक भूमि और साहित्यकारों का जमावड़ा, यह पल कितना सुखद तथा दृश्य कितना मनोरम रहा होगा, इसका अंदाजा आप सभी स्वयं लगा सकते हैं। इस मनोरम दृश्य एवं सुखद अनुभूति से वंचित होने का मन तो नहीं था परन्तु समय की बाध्यता थी, साथ ही मंदिर बंद होने का समय भी हो रहा था तो हम सभी वापस लौट चले अपने अस्थायी निवास सुखधाम की ओर। मंदिर से वापस लौटकर सभी ने रात्रिभोज किया। रात्रिभोज के पश्चात् कुछ मित्रों ने चर्चा-परिचर्चा कर एक-दूसरे के साथ अपना परिचय भी बढ़ाया। मेरे खराब स्वास्थ्य तथा पुत्री की देखभाल के कारण मैं रात्रि में सबके साथ ज्यादा समय व्यतीत नहीं कर पाई, पर सबके साथ मैंने जितने भी क्षण साँझा किए, वे अविस्मरणीय रहेंगे।
22 जनवरी की सुबह नाश्ता करने के पश्चात 9 बजे वृंदावन साहित्य महोत्सव 2023 के प्रथम सत्र का शुभारंभ किया गया। इसमें  ब्रजभाषा, साहित्य, कला, संस्कृति, शिक्षा एवं पत्रकारिता पर विशेष सत्र हुआ और उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। ट्रू मीडिया वृंदावन साहित्य महोत्सव -2023 में साहित्यकारों को ब्रजभाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाकार्य के लिए श्री विनोद पराशर, श्री देवेन्द्र प्रकाश शर्मा, श्रीमती बबली सिन्हा ‘वान्या’, श्रीमती उषा श्रीवास्तव, डॉ. अर्चना गर्ग, श्रीमती उर्वी ऊदल, श्रीमती लक्ष्मी अग्रवाल, श्री विकास अगवाल, श्रीमती अपर्णा थपलियाल, श्रीमती एलिज़ाबेथ जॉर्ज, श्री राजिंदर महाजन, डॉ.सूक्ष्मलता महाजन, श्रीमती भूपिंदर कौर, डॉ. सविता चड्ढा, डॉ. कामदेव शर्मा, श्रीमती अंजना जैन, डॉ.इला जायसवाल, श्री नरेन्द्र वर्मा, श्री जगदीश मीणा, श्री गुरचरण मेहता रजत, श्री कुमार राघव, श्रीमती कीर्ति रतन, डॉ.पुष्पा जोशी, डॉ. वीणा मित्तल, श्रीमती पूजा श्रीवास्तव, श्रीमती सुशीला देवी, डॉ. अंजीव कुमार रावत, डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति, श्री अशोक कुमार, पंडित नमन, श्री हरकीरत सिंह ढींगरा, श्री प्रशांत उपाध्याय, डॉ.चंद्रपाल मिश्र गगन, श्री अरविन्द कबीरपंथी, श्रीमती संतोष संप्रीति, डॉ.संजय जैन, डॉ.निशा रावत, श्री संदीप बंसल आदि को सम्मानित किया गया। प्रथम सत्र की समाप्ति के पश्चात सभी ने भोजन किया एवं तत्पश्चात द्वितीय सत्र का आगाज किया गया, जिसमें सभी साहित्यकारों ने काव्यपाठ किया एवं ओमप्रकाश प्रजापतिजी ने धन्यवाद व्यक्त किया।
वृंदावन साहित्य महोत्सव पूरी तरह सफल रहा तथा इस के लिए वृंदावन की पावन धरा का चुनाव सोने पर सुहागा साबित हुआ। वृंदावन धर्म-अध्यात्म तथा प्रेम की भूमि है। पूरे विश्व से लोग यहाँ आध्यात्मिक शांति के लिए आते हैं। इस धरा पर साहित्य समागम करना अपने आप में अद्भुत एवं अतुलनीय रहा। महोत्सव की समाप्ति के बाद एक-दूसरे के संग-साथ से कारवाँ वापस चल पड़ा अपने-अपने निवास की ओर। बस में बैठे सभी साहित्यकारों की उपस्थिति से ऐसा लग रहा था मानो जैसे किसी माली ने विभिन्न बगिया से चुन-चुनकर खूबसूरत महकते फूलों की एक माला सी पिरो दी हो। मैं इस सफर में शामिल कुछ विभूतियों से पहले से परिचित थी, तो कुछ साथियों से मेरा यह पहला परिचय था। सफर में शामिल सभी लोग आत्मीयता एवं वात्सल्य से परिपूर्ण थे। किसी ने भी महसूस ही नहीं होने दिया कि हम सभी घर से दूर हैं। ऐसा लगा यह भी हमारा ही परिवार है। जहाँ कोई माँ के वात्सल्य की छाँव प्रदान कर रही थीं तो कोई पिता सा संरक्षण। कोई बड़े भाई की तरह देखभाल कर रहा था तो कोई बहन,भाभी या सहेली की तरह हँसी-ठिठोली, तो कोई आत्मीय मित्र सा प्रतीत हो रहा था। ऐसा लगा यह यात्रा परिवार एवं मित्रों के साथ की जा रही है जहाँ पारिवारिक प्रेम के साथ-साथ मित्रता की अटूट डोर भी थी।  इस खूबसूरत सफर में मेरी पुत्री गुंजन एवं मेरे जीवन सहभागी विकास अग्रवाल का भी प्रेमपूर्ण साथ रहा। उनके साथ से मेरी यह यात्रा और अधिक दिलचस्प हो गई।
दो दिवसीय इस यात्रा में ऐसा लग रहा था जैसे की मौसम भी हमारा साथ दे रहा था। दोनों दिन मौसम सुहावना बना रहा तथा यात्रा की वापसी में बारिश की बौछार ने हमारी यात्रा की सफलता को स्वतः ही बयाँ कर दिया। बारिश की बूंदों से मिट्टी से जो भीनी-भीनी सुगंध आ रही थी, उससे सभी का मन आनंदित एवं प्रसन्नचित्त हो गया। ऐसा अनुभव हुआ जैसे कान्हाजी का आशीर्वाद हम सभी को मिल चूका था। यात्रा की समाप्ति के बाद ह्रदय में बिछोह की पीड़ा थी, परन्तु मिलन के बाद बिछोह भी जरूरी है। यह बिछोह की पीड़ा ही तो वह माध्यम बनेगा जिसके कारण हम सभी एक बार फिर आपस में मिलने को लालायित रहेंगे।

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