हमारे दरम्यां बढ़ा फासला शायद कभी न होगा कम,
मगर सब पाकर भी मेरी जिंदगी में कमी हो गई है माँ।
यूँ तो अब सदा तुम आसमान के तारों के संग रहने लगी हो,
तेरे बिना अब यहाँ की वीरान सी जमीं हो गई है माँ।
सूखते नहीं अब मेरी आँखों के आँसू किसी भी वक्त,
लगता है कि अब सदा मेरे आँखों में नमी हो गई है माँ।
हम कभी न थे दुनिया के किसी बंदिशों के दायरे में बँधे,
अब मेरे लिए बेगाना यहाँ की सरजमीं हो गई है माँ।
लगता है तुम यहीं हो हमारे बीच मुस्कुराती हुई सदा,
तुम चली गई हो दूर यह सिर्फ गलतफहमी हो गई है माँ।
खुशियाँ फटकती नहीं ‘दिग्विजय’ के करीब पहले जैसी,
अब तो दिन भी डरावने और रातें सहमी हो गई है माँ।
दिग्विजय ठाकुर (टविंकल )
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