पर्पल पेन समूह द्वारा ‘विश्वंभरा 2023’ काव्य गोष्ठी का आयोजन 

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एवं होली के उपलक्ष्य में दिल्ली की अग्रणी साहित्यिक संस्था पर्पल पेन द्वारा ‘विश्वंभरा 2023’ काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। समूह की संस्थापक-अध्यक्ष वसुधा ‘कनुप्रिया’ के संयोजन और संचालन में आयोजित इस काव्य गोष्ठी में बड़वानी से प्रबोध मिश्र हितैषी, फरीदाबाद से रेखा जोशी, गुरुग्राम से वीना तँवर, पटना से पूजा झा, चंडीगढ़ से यश छाबड़ा, ग़ाज़ियाबाद से जगदीश मीणा सहित दिल्ली से गीता भाटिया, अंजू खरबंदा और बबिता कंसल ने इस ऑनलाइन आयोजन में भाग लिया। सभी ने अंतर्राष्टीर्य महिला दिवस और होली पर सुन्दर और सार्थक रचनाओं का सुरुचिपूर्ण पाठ किया।
‘विश्वंभरा 2023’ का शुभारंभ करते हुए वसुधा ‘कनुप्रिया’ ने होली और महिला दिवस मनाए जाने के महत्व को बताते हुए एक संक्षिप्त स्वागत वक्तव्य दिया। तत्पश्चात एक-एक कर कविगण ने अपनी कविताओं का बेहतरीन पाठ किया।

होली की बात हो और कान्हा, श्री राधे, वृन्दावन का ज़िक्र न आये, यह असंभव है।

“हाथ लिए हैं रंग पिचकारी, कान्हा उधम मचाय रहे हैं,
आनन कानन कुंज गलिन में, रंग गुलाल उड़ाय रहे हैं।” — वीना तंवर ने खूबसरत अंदाज़ में गाया।
वहीं जगदीश मीणा ने सस्वर सुनाया —
“मस्ती छाय रही फागुन की , चहुं दिस बिखर  रह्यै है रंग
अब तो गली गली हुरियारे, जम के घोंट रहे भंग”

“कान्हा की बंसी की धुन पर
नाचे  मन का मोर
चोली रंग दे मोरी कन्हैया
शोर मचे सब ओर
कान्हा मेरा है चित चोर” — गीता भाटिया ने सुन्दर गेय कविता पढ़ी।

होली पर पकवानों की बात न हो, तो होली अधूरी है। रेखा जोशी ने कुछ इस तरह अपनी बात कही —

“छाई  बहार मौसम भी है खिला खिला सा
छलक रहे रंग है सभी को गले लगाएं,
मधुमास है आया मौसम भी अब सुहाना
गुझिया मन भाये  कांजी बड़े भी खाएँ”

महिला दिवस पर भी सभी ने कवितायेँ प्रस्तुत की, जिनमें नारी के विभिन्न रूपों को, नारी के समाज में महत्व को, उसके द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों को, विषम परिस्थितियों संग नए दौर की सशक्त महिला को कविता के माध्यम से दर्शाया गया।

“गृह से सेना तक हुआ , नारि शक्ति का जोर ।
देश भक्ति के भाव को,बढ़ा रही हर ओर ।।” — प्रबोध मिश्र हितैषी ने सारगर्भित दोहे प्रस्तुत करते हुए पढ़ा।

हर रूप में नारी रिश्तों का बखूबी निर्वहन करती है। अंजू खरबंदा ने इसे कुछ इस तरह कहा —
“माँ बहन बहू और बेटी के रूप में
हर रिश्ते में भर देती जान
नारी से संभव हर कल्याण
सिर्फ़ नारी को ही मिला ये वरदान !”
नारी के सशक्त रूप को दर्शाते हुए बबिता कंसल ने पढ़ा —
“मैं नारी
मैं ही सृष्टि हूं
जीवन के कठिन पथ पर
न घबराई न डगमगाई”
‘सहनशील नारी’ शीर्षक की कविता में डॉ. पूजा झा ने कहा –
“देवी सदृश,पूजनीया या कहो बेचारी
सबको लगती कितनी प्यारी
पर अधिकारों की बात करने वाली
बन जाती है बुरी,आंखों की किरकिरी”

नारी के कष्ट की एक झांकी यश छाबड़ा ने कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की —

वो देर से आये, तो उसकी आदत है
वो रात को घर न आये तो, उसकी नादानी है
वो पी कर आये, तो उसका शौक है….
मेरे सर से चुन्नी क्या सरक गई, मै बेहया हो गई!”
वसुधा ‘कनुप्रिया’ द्वारा प्रस्तुत दोहे और नज़्म सभी ने बहुत पसंद किये। होलिका दहन पर उन्होनें यह सार्थक सन्देश देता दोहा पढ़ा —
दहन होलिका में करें, मन के सभी विकार
ईश्वर से माँगे दुआ, सुखी रहे संसार

एक सशक्त नारी की मनोव्यथा का वर्णन वसुधा ‘कनुप्रिया’ ने कुछ यूँ किया —

बन के नारी गुनाह क्या कोई मुझसे हुआ
हर बशर ने सवाल बस मुझ से किया
मुझी से हमेशा की उम्मीद कुर्बानी की
कि मैं खा लूँ क़सम बे-ज़ुबानी की
न सोचूँ, न बोलूँ, न कभी कुछ कहूँ
दूँ इजाज़त घर समाज को मनमानी की
तुम भी बस आम से एक पुरुष ही रहे
चाहते थे प्रिया कभी कुछ न कहे
तुमने बनाई थी तस्वीर इक दासी की
मैं हूँ समर्थ, निश्चयी औ विश्वासी सी…”

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